Sunday, 21 February 2016

डायरी त ली शायरी ......8


*……..शिकवा था तुजसे जब... किसी भी मोडपे कोइभी मिला
        दुसरोन्ने नक्षेकदम ढुंडे...अब तेरे दरपे वक्त से पहेले लाउ मै गिला



*……..बारिश मे बाहर निकला, ठंड मे ओढी चादर, गर्मी मे पसिने पोछे
        खामी खोजनेवालोंके लिये तुने भी कितने तरिके सोचे



*…….जहा जाउ मै पाउ तेरे होने के निशान
       फिरभी क्यो ढुंडता फिरता दरदर मै होकर परेशान
...भावना