Tuesday, 20 October 2015

शुरू करे अब काम कुछ नेक


ढके मुँहपर...ऑक्सीजन मास्क
कैसे पहचाने?...कठिन है टास्क

आदत नहीं चलनेकी इनको, चले कतार में दूर
ये है, पचीसवीँ सदीकी एज्यूकेशनल टूर


घंटे बीते... नंबर नहीं आया
कई बार...सिलिंडर मंगवाया

भूख, प्यासपर गोली खाकर, क्यों खड़े है मजबूर?
क्यों है, पचीसवीँ सदीकी ये एज्यूकेशनल टूर?


"अब मत करो तुम ज्यादा शोर"
"ध्यानसे देखो...दाई ओर"

"हाथ न इसको तुम लगाना...निरिक्षण करना भरपूर
क्या है, पचीसवीँ सदीकी ये एज्यूकेशनल टूर?


कुछ हरासा...रंग था ऊपर
पकड़ के था खड़ा...एक जगहपर

न बोल, न सुन, न देख रहा था, अलग थे उसके मिजाज
पचीसवीँ सदीकी एज्यूकेशनल टूर है आज


धीमी स्वर में...टीचर जी बोले
आँख के आँसू न उन्हें संभाले

"मेरे दादाजी कहते थे, इसे देखना जरूर
शुरू है, पचीसवीँ सदीकी एज्यूकेशनल टूर


कहि नहीं ये आजकल दिखता है
पूरे जग में एक ही बचा है

भाग्यशाली समझो तुम खुद को, अवसर मिला है ये
पचीसवीँ सदीकी एज्यूकेशनल टूर थी ये


और अचानक...नींद खुल गई
खुली थी खिड़की...हवा चल रही

देखा जब खिडकीसे बाहरखड़ा था वो ही पेड़ एक
इसे बचाना ही होगा...चलो शुरू करे अब काम कुछ नेक


...भावना