Sunday, 8 February 2015

डायरी त ली शायरी ...... २


*......तू कहा है?....मैने उनसे पूछा तेरा पता

     उन्हें तो एहसास भी था, ना महसूस हुई तेरी कमी कभी...

     फिरभी जमाए बैठे है कब्ज़ा तेरे नामपर, तेरे जज़्बातोंपर

     इन्सानियत, फ़रियाद कर तेरे इस घुटन की अभी I

 

*......आजकल मेरे खिड़की से जो देखू तो, नज़र आता है तेरा छोटापन

     ए आसमां, तूने भी समज़लिया के तेरा बड़प्पन तो कोई काम का न था…

     के किसी शेर, किसी कविता में अभी,

     तू सिर्फ एक लब्ज, कहानी बनाने का एक सामान था I

...भावना